दोनो तरफ जो लिखा हो भारत, सिक्का वही अच्छाला जाए, तू भी है राणा का वंशज, फेक जहां तक भला जाए!!
लखनऊ के दिवंगत कवि वाहिद अली ‘वाहिद’ द्वारा कारगिल युद्ध के दौरान लिखी गई यह कविता आज मानो अमर हो चली है, पूरा देश और पूरा विश्व इन पक्तियों को भारत के वीर सुपुत्र को समर्पित कर, उन्हें अमर कर रहा है।
हम बात कर रहे हैं 2021 के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा की जिसने अपनी कला और मेधा का सही समय पर प्रयोग कर भारत का और अपने हरियाणा क्षेत्र का नाम पूरे विश्व में रोशन किया है। 2021 में हुए टोक्यो ओलंपिक में नीरज ने अपने जीवन का प्रथम ओलंपिक भाला फेंक खेल खेला, और उसमे भी प्रथम बार में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से अंकित करवा दिया और आज पूरे विश्व में भारत के इस शूर वीर के नाम का डंका अभी तक बज रहा है।
टोक्यो से घर वापसी करते वक्त नीरज अपनी पारी में इस्तेमाल किए हुए भाले को अपने साथ निशनी के बतौर लेकर आए, यह सिर्फ एक भाला ही नहीं बल्कि देश के हर उस नौजवान के लिए एक प्रेरणा का भावी स्रोत है जो देश के लिए खेल जगत में उच्च स्तर पर मैडल जीत पाने की चेष्टा रखते हैं।
हमारे प्रधानमंत्री ने नीरज की घर वापसी पर उनके भाले के ई-नीलामी के लिए आज्ञा मांगी थी, ताकि उनके जीते हुए जवलिन को बेच कर उससे प्राप्त धनराशि को देश के खेल विकास में सम्मालित करे सकें। नीरज ने अपने भाले पर हस्ताक्षर के साथ प्रधानमंत्री से मिलते वक्त उन्हें धरोहर कर दिया।
नीरज चोपड़ा सिर्फ मैदान में ही नहीं, बड़ी ई-नीलामी में भी बाजी मार चुके हैं
“ई-नीलामी के दौरन 1348 स्मृतियों में से प्रधानमंत्री को उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिए हुए अभूतपूर्वी भाले की सबसे ज्यादा बोली लगायी जो 1.5 करोड़ भारतीय मुद्रा बनाती है” -भारत के सांस्कृतिक मंत्रालय ने बताया।
नीरज के भाले को “नॉर्डिक स्पोर्ट्स ट्रैक एंड फील्ड स्पोर्ट” के द्वारा बनाया गया था, जिसकी बाजार कीमत 80 हजार रुपये बतायी जा रही है।
आखिर किसने खरीदा नीरज का जैवलिन?
काफ़ी रोचक और हर मन में उठने वाले इस सावल का उत्तर भारत के सांस्कृतिक मंत्रालय ने गुप्त रखा है, सरकार ख़रीदने वाले का नाम भी गुप्त रखना चाहती है, ताकि नीलामी की मर्यादा पर कोई सवाल न उठे।