आखिर कब तक, बस मेरा ही संहार करोगे तुम
कर चुके मेरा वध राघव, और कितनी बार करोगे तुम
तुम मर्यादा के पालक हो, कैसे मर्यादा तोड़ोगे
एक ही पाप की सजा, मुझे 100 बार भला कैसे दोगे
पहले सागर उस पार मिली, फिर सागर के इस पार मिली
अपराध किया था एक बार, लेकिन साज़ा हज़ारो बार मिली
तुम नायक हो- मैं खलनायक, बेशक तुम मुझपर वार करो
भारत के क्रूर दरिंदों का, लेकिन पहले तुम सर्वनाश करो…..
पूरा भारत वर्ष आज असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक और पावन पर्व विजयादशमी (दशहरा) मना रहा है वहीं दूसरी ओर नरेश कात्यानी की उक्त अद्भुत कविता आज के दिन हमारे समाज को एक और अच्छा संदेश दे रही है। मानो असत्य आज भारी मन से कह रहा हो कि मुझे तो प्रत्येक वर्ष समाज के बीच समाप्त किया जाता है, लेकिन हमारे समाज के बीच जो बुराइयाँ और असत्य है वो पूरे वर्ष कभी समाप्त नही होता। उस पर किसी का ध्यान नही जाता। ये कविता हमारे समाज के ऊपर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है, जहां पर रावण के अपराध की साजा त्रेता युग से आज हर वर्ष उसे दी जाती रही है, वही असंख्य अपराधी, भ्रष्टाचारी, बलात्कारी नेताओं को हम अपने संसद की सीट थामा देते हैं, जिसकी साजा उन्हे 100 बार तो छोड़िए एक बार भी नहीं मिलती है।
क्या ये सही है? अब किसी की सोच को कहां तक बदला जाए, वो कहते हैं ना, कि…
“हर घर मैं बैठा एक रावण, इतने राम कहा से लाऊं,”
हम सीमा नही लाघेंगे, लेकिन दुश्मन से सीख जरूर ले सकते हैं।
रावण का बौद्धिक स्तर बहुत अच्छा था, उसका ज्ञान अमूल्य था, लेकिन वो इसे किसी को बांट नहीं पाया। भगवान श्री राम उस बुद्धिमान व्यक्ति को परख चुके थे। रावण ने अपने मरने के वक्त लक्ष्मण को जो सीख दी थी, वो किसी भी व्यक्ति को प्रचुर मत्रा में सफल बनाने के लिए सर्वोत्तम है….
रावण से 10 सीख
- अपने शिक्षक को महत्व दें (VALUE YOUR TEACHER)
जब राक्षसों के राजा- रावण पर भगवान राम द्वारा हमला किया गया था और वह अपनी मृत्यु के करीब था, तो राम ने अपने भाई लक्ष्मण से कहा कि वह उसके पास जाएं और कुछ ऐसा सीखें जो रावण जैसे विद्वान ब्राह्मण के अलावा कोई अन्य व्यक्ति उसे कभी नहीं सिखा सकता था। राम ने अपने भाई लक्ष्मण से कहा, “मरने से पहले जल्दी से रावण के पास जाओ और जो कुछ भी वह ज्ञान साझा कर सकता है उसे साझा करने का अनुरोध करें।”
रावण को भले ही कितना भी पापी समझा जाता हो लेकिन असल में उनका बौद्धिक स्तर बहुत ऊँचा था, वह एक महान विद्वान था। लक्ष्मण रावण के पास गए और उसके सिरहाने खड़े होकर उनके अपने अपार ज्ञान को लक्ष्मण के साथ साझा करने का निवेदन करने लगे। इस पर रावण ने कहा कि “यदि आप एक छात्र के रूप में मेरे पास आए हैं तो आपको मेरे चरणों में बैठना चाहिए, क्योंकि शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए।”
लक्ष्मण रावण के पास गए और इस बार वह उनके चरणों के पास खड़े हो गए। उन्हें देखकर रावण लक्ष्मण को तरह-तरह के ज्ञान रहस्य की बातें बताने लगे।
- समय का मूल्य (TIME VALUE)
किसी भी शुभ कार्य को पूरा करने में देरी न करें। वहीं दूसरी ओर जितना हो सके अशुभ कार्यों में देरी करते रहें। उन्होंने यह कहकर इस शिक्षण का समर्थन किया “शुभास्य शिग्राम”।
उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि वह राम को नहीं पहचान सकते और इसलिए मोक्ष प्राप्त करने की उनकी संभावना में देरी हुई। यदि आप इस नियम का पालन करते हैं तो आप केवल खुद को ही नही बल्कि कई अन्य लोगों को क्षतिग्रस्त होने से बचा सकते हैं।
- कभी किसी को कम मत समझो (NEVER UNDERESTIMATE ANYBODY)
उन्होंने कहा कि उन्होंने मनुष्यों और उनके वानरसेना को कमतर आंकने की गलती की, जिसे उन्होंने सोचा था कि वे एक दैत्य या असुर की तुलना में कम ताकतवर थे, और परिणामस्वरूप वह युद्ध हार गए और अंततः उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी।
- अपने रहस्यों को किसी से साझा न करें (NEVER REVEAL YOUR SECRETS)
रावण ने लक्ष्मण से कहा कि उसने अपने सगे भाई विभीषण को अपने जीवन का रहस्य बताने की गलती की, जिसका अंतत: उल्टा असर हुआ। रावण ने इसे अपनी सबसे बड़ी भूल बताया।
- अपनी इंद्रियों को कभी पूरा न करें (NEVER CATER TO YOUR SENSES)
रावण ने कहा, उसने ये पाठ कड़वे अनुभव से सीखे हैं, लोभ इन्द्रियों की आसक्ति और उनकी पूर्ति से उत्पन्न होता है। उन्हें उनके उचित स्थान पर रखें, वे ज्ञान के लिए खिड़की हैं। रावण ने लक्ष्मण को राजनीति और राजनीति के बारे में भी बताया।
अपने सारथी, द्वारपाल, रसोइया और भाई के शत्रु मत बनो, वे तुम्हें कभी भी हानि पहुँचा सकते हैं। यह मत सोचो कि तुम हमेशा विजेता हो, भले ही आप हर समय जीत रहे हों। सदा उस पर भरोसा रखो, जो तुम्हारी निन्दा करता है।
- कभी मत सोचो कि तुम्हारा दुश्मन छोटा या शक्तिहीन है, जैसा मैंने हनुमान के बारे में सोचा था।
- कभी नहीं सोचें कि आप ग्रहों की चाल बदल सकते हैं, वे आपके लिए वही लाएंगे जो आपकी किस्मत में है।
- चाहे ईश्वर से प्रेम करो या घृणा करो, लेकिन दोनों अपार और बलवान होने चाहिए।
- एक राजा जो महिमा पाने के लिए उत्सुक है, उसे सिर उठाते ही लालच को दबा देना चाहिए।
- राजा को चाहिए कि वह दूसरों की भलाई करने के छोटे-से-छोटे अवसर का स्वागत करे, बिना किसी देरी के।
लक्ष्मण को राजनीति और राजनीतिज्ञता सहित ज्ञान के साथ प्रबुद्ध करने के बाद- “जय श्री राम” कहकर रावण ने अपनी अंतिम सांस ली। इस तरह अंतिम क्षणों में लक्ष्मण रावण को प्रणाम करते हैं और राम के पास लौट जाते हैं।